(What is irrigation?) सिचाई क्या है ?
फसलो के सफल उत्पादन
के लिये जल, वायु, धूप और भूमि सम्बन्धी ऐसी आवश्यकतायें – जिनके बिना हमारा कम
नहीं चल सकता | इन चार आधारभूत आवश्यकतायें में से भूमि सीमित है और अंको
घटाया-बढाया नहीं जा सकता, वायु और धूप प्राकृतिक देन हैं, इसलिये इन पर हमारा कोई
वश नहीं है |
फसलो की पानी की आवश्यकता
मुख्यतःवर्षा से पूरी होती है लेकिन वर्षा इतनी अनियमित और अनिश्चित होती है कि
केवल वर्षा के ही भरोसे खेती करना जुआ खेलने के सामान होगा | यद्धपी हमारे देश में
वर्ष भर में होने वाली वर्ष का औसत 120
सेन्टीमीटर है लेकिन देश के बिभिन्न भागों
होने वाली वर्षा में भरी असमानता है |
जैसेः- असम की पहारियों में स्थित चेरापूँजी स्थान में तो
वर्ष भर में 1275 सेन्टीमीटर से भी अधिक वर्षा होती है लेकिन
इसके विपरीत राजस्थान के कुछ भागों में वर्ष भर में 12 सेन्टीमीटर
से भी कम वर्षा होती है | इन दो सीमओं के भीतर देश के बिभिन्न भागों में होने वाली
वर्षा की अनेक अवस्थायें पाई जाती हैं और इन अवस्थाओं में प्रतिवर्ष घटा-बढ़ी लगी
रहती है |
अतः देश के विभिन्न भागों में लगभग प्रत्येक वर्ष सुखा और बाढ़ का आना एक
आम बात है जो कि वर्षा की कम अथवा अधिक होने का परिणाम है | इन्हीं सब कारणों से
फसलो के सफल उत्पादन के लिये कृत्रिम रूप से पानी देने की आवश्यकता होती है | फसलों
के सफल उत्पादन हेतु पौधों की बृद्धि के
लिये मृदा में आवश्यक नमी बनाये रखने के लिए कृत्रिम ढंग से जल देने की क्रिया को
सिंचाई कहते हैं | ‘‘The application of water to the soil for the
purpose of supplying moisture essential for plant growth is termed as
irrigation.’’
अथवा ‘‘फसलो को कृत्रिम रूप से पानी देने की क्रिया को सिंचाई कहते हैं’’ |