VITAMINS IN VEGETABLES

VITAMINS IN VEGETABLES

सब्जियों में पाये जाने वाले विटामिन और इनके कमी से होने वाले रोग 





हेल्लो दोस्तों नमस्कार मैं सिकंदर राय | मैं आप सब को बताउगा की किन-किन सब्जियों  में कौन-कौन बिटामिन पाये जाते है तथा इनके सेवन करने से हमारे स्वास्थ पर क्या प्रभाव परता हैं |

(1)           बिटामिन ‘ए’-बृद्धि एवं जनन के लिए आवश्यक है | इसकी कमी से त्वचा का सूखापन, रतौंधी, आँखों में जलन, मुंहासे, पेट में पथरी, बच्चों में बढ़वार का रुक जाना आदि विकार उत्पन्न हो जाते हैं |पाचन क्रिया को सामान्य रखने में इसका बहुत योगदान है | यह बिटामिन टमाटर, गाजर, सलाद, पातगोभी, सकरकंद, शलजम, चुकन्दर, पालक, मेथी, हरी प्याज, हरी मिर्च आदि सब्जियों से प्रचुर मात्रा में प्राप्त किया जाता है |

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(2)           बिटामिन ‘बी’ कम्प्लेक्स (Vit B1, B2, B6, B12)—ये शरीर की उचित बृद्धि एवं जनन के लिए आवश्यक हैं | इसकी कमी से बेरीबेरी रोग, भूख में कमी, भार में कमी तथा शरीर के तापमान में गिरावट आदि विकार उत्पन्न हो जाते हैं | यह बिटामिन सलाद, पातगोभी, टमाटर, मटर, सेम, बैंगन, प्याज, गाजर एवं सकरकंद से प्रचुर मात्रा में प्राप्त किया जा सकता है |शारीरिक एवं मानसिक थकान मिटाने में एवं भूख बढ़ाने में बिटामिन बी काम्प्लेक्स का महत्वपूर्ण योगदान है |
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(3)           बिटामिन ‘सी’- इस बिटामिन को ‘एस्कोर्बिक अम्ल’ भी कहते हैं |  निरोग एवं स्वस्थ रहने के लिए इस बिटामिन की बहुत ही महता है | इसकी कमी से स्कर्वी रोग, गठिया, दांत व मसूढ़ का कमजोर हो जाना आदि कई रोग हो जाते हैं | सब्जियों को उबालकर खाने से इस बिटामिन की मात्रा कम हो जाती है | यह बिटामिन टमाटर, हरी मिर्च, आलू, शकरकंद, पातगोभी, सेम, गाजर, शलजम, पालक आदि सब्जियों से प्रचुर मात्रा में प्राप्त किया जा सकता हैं |

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(4)           बिटामिन ‘डी’- इस बिटामिन को रिकेटरोधी बिटामिन भी कहा जाता है | इसकी कमी से बच्चों में सुखा रोग हो जाता है | हड्डियों की उचित रचना तथा दांतों की मजबूती के लिए बिटामिन ‘डी’ अनिवार्य होता है | यह कैल्शियम तथा फॉस्फोरस लवणों का उचित उपयोग करके हड्डियों के संरचना में मदद करता है | सभी हरी सब्जियाँ इस बिटामिन का उतम स्त्रोत हैं |


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(5)           बिटामिन ‘इ’- इस बिटामिन को बंध्यतारोधी बिटामिन भी कहते है | यह बिटामिन प्रजनन कार्य के लिए बहुत ही आवश्यक है |यह बिटामिन सलाद, पातगोभी, मटर तथा प्याज से प्राप्त किया जा सकता है |
    








HISTORY OF VEGETABLES IN INDIA

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भारत में सब्जियों का इतिहास


नमस्कार दोस्तों मैं सिकंदर राय | जैसा की आप सभी जानते है की हमारे दैनिक जीवन में सब्जियों का बारा ही महत्व है | क्या बालक और क्या बृद्ध, सभी लोगो के आहार में सब्जियों का समावेश, उन्हें सवस्थ बनाये रखने के लिए आवश्यक है | भारत में 3.64 मिलियन हेक्टेयर भूमि में फलों की खेती होती है तथा 5.3 मिलियन हेक्टेयर भूमि में सब्जियाँ उगाई जाती हैं | इस प्रकार हमारी केवल 1/3 आवश्यकता ही पूर्ण हो पाती है | भारत का विश्व में फलों के उत्पादन में प्रथम स्थान तथा सब्जी उत्पादन में दूसरा स्थान है |
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          भारत जैसे देश में, जहाँ अधिकतर संख्या शाकाहारी है, सब्जियों का सब्जियों का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है | आहार विशेषज्ञों के अनुसार प्रतेक ब्यक्ति को प्रतिदिन 283 ग्राम सब्जी (113 ग्राम पतीदार सब्जियाँ, 85 ग्राम आलू, गाजर, ताना-जर वाली सब्जियाँ तथा 85 ग्राम अन्य सब्जी जैसे टमाटर, बैगन आदि ) खानी चाहिए परन्तु हमारे देश में प्रति ब्यक्ति प्रतिदिन केवल 30-80 ग्राम ही सब्जी उपलब्ध हो पाती है | पुरे भारत देश में सम्पूर्ण खेती योग्य क्षेत्र के केवल 1.2% भाग में सब्जी की खेती होती है जिससे सब्जियों का उत्पादन कम होता है | संतुलित आहार और स्वास्थ्य के अनुरक्षण के लिए सब्जियाँ बहुत ही आवश्यक हैं | मांस, पनीर तथा अन्य वसीय खाद्य पदार्थो के पाचन के दौरान बने अम्लो को निष्प्रभावी करने के लिये सब्जियों का सेवन आवश्यक है | ये कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन और खनिज तत्वों की पूर्ति भी करती हैं |


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 (What is irrigation?) सिचाई क्या है ?

(What is irrigation?) सिचाई क्या है ?

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फसलो के सफल उत्पादन के लिये जल, वायु, धूप और भूमि सम्बन्धी ऐसी आवश्यकतायें – जिनके बिना हमारा कम नहीं चल सकता | इन चार आधारभूत आवश्यकतायें में से भूमि सीमित है और अंको घटाया-बढाया नहीं जा सकता, वायु और धूप प्राकृतिक देन हैं, इसलिये इन पर हमारा कोई वश नहीं है |
  फसलो की पानी की आवश्यकता मुख्यतःवर्षा से पूरी होती है लेकिन वर्षा इतनी अनियमित और अनिश्चित होती है कि केवल वर्षा के ही भरोसे खेती करना जुआ खेलने के सामान होगा | यद्धपी हमारे देश में वर्ष भर में होने वाली  वर्ष का औसत 120 सेन्टीमीटर  है लेकिन देश के बिभिन्न भागों होने वाली वर्षा में भरी असमानता है |
         जैसेः- असम की  पहारियों में स्थित चेरापूँजी स्थान में तो वर्ष भर में 1275 सेन्टीमीटर से भी अधिक वर्षा होती है लेकिन इसके विपरीत राजस्थान के कुछ भागों में वर्ष भर में 12 सेन्टीमीटर से भी कम वर्षा होती है | इन दो सीमओं के भीतर देश के बिभिन्न भागों में होने वाली वर्षा की अनेक अवस्थायें पाई जाती हैं और इन अवस्थाओं में प्रतिवर्ष घटा-बढ़ी लगी रहती है |
           अतः देश के विभिन्न भागों में लगभग प्रत्येक वर्ष सुखा और बाढ़ का आना एक आम बात है जो कि वर्षा की कम अथवा अधिक होने का परिणाम है | इन्हीं सब कारणों से फसलो के सफल उत्पादन के लिये कृत्रिम रूप से पानी देने की आवश्यकता होती है | फसलों  के सफल उत्पादन हेतु पौधों की बृद्धि के लिये मृदा में आवश्यक नमी बनाये रखने के लिए कृत्रिम ढंग से जल देने की क्रिया को सिंचाई कहते हैं | ‘‘The application of water to the soil for the purpose of supplying moisture essential for plant growth is termed as irrigation.’’
       अथवा ‘‘फसलो को  कृत्रिम रूप से पानी देने की क्रिया को सिंचाई कहते हैं’’ |
                              
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